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धर्म का एक पंथ
 

EditRA Summary of the Beliefs and Practices Of Hundreds of Millions Worldwide
Who Follow the Saivite Hindu Religion And Worship Lord Siva as Supreme God
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शैव हिन्दू धर्म का एक पंथ


1.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है कि भगवान शिव ईश्वर हैं, जिनकी परम सत्ता, पराशिव, दिक्काल और रुप से परे है। योगी मौन रुप से उसे "नेति नेति" कहते हैं। जी हाँ, भगवान शिव ऐसे ही अबोधगम्य भगवान हैं। ॐ

 

2.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वाश है कि भगवान शिव ईश्वर हैं, जिनके प्रेम की सर्वव्यापी प्राकृति, पराशक्ति, आधारभूत, मूल तत्व या शुद्ध चेतना है, जो सभी स्वरुपों से ऊर्जा, अस्तित्व, ज्ञान और परमानन्द के रुप में बहती रहती है। ॐ

 

3.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है कि भगवान शिव ईश्वर हैं , जिनकी सर्वव्यापी प्रकृति परम् आत्मा, सर्वोपरि महादेव, परमेश्वर, वेदों एवं आगमों की प्रणेता तथा सभी सत्ताओं की कर्ता भर्ता एवं हर्ता हैं। ॐ

 

4.

शिव के सभी अनुयायी शिव-शक्ति के पुत्र महादेव भगवान गणेश में विश्वास करते हैं तथा कोई भी पूजा या कार्य प्रारंभ करने से पूर्व उनकी पूजा अवश्य करते हैं। उनका नियम सहानुभूतिशील है। उनका विधान न्यायपूर्ण है। न्याय ही उनका मन है। ॐ

 

5.

शिव के सभी अनुयायी शिव - शक्ति के पुत्र महादेव कार्तिकेय में विश्वास करते हैं, जिनकी कृपा का वेल अज्ञान के बंधन को नष्ट कर देता है। योगी पद्मासन में बैठकर मुरूगन की उपासना करते हैं। इस आत्मसंयम से, उनका मन शांत हो जाता है। ॐ

 

6.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है कि सभी आत्माओं की रचना भगवान शिव ने की है और वे तद्रूप (उन्ही जैसी) हैं तथा जब उनकी कृपा से अणव, कर्म और माया दूर हो जाएगी, तो सभी आत्माएं इस तद्रूपता का पूर्ण साक्षात्कार कर लेंगी। ॐ

 

7.

शिव के सभी अनुयायी तीन लोकों में विश्वास करते हैं: स्थूल लोक (भूलोक), जहां सभी आत्माएं भौतिक शरीर धारण करती हैं, सूक्ष्म लोक (अंतर्लोक) जहां आत्माएं सूक्ष्म शरीर धारण करती हैं, तथा कारण लोक (शिवलोक) जहां आत्माएं अपने स्व-प्रकाशमान स्परुप में विद्यमान रहती हैं। ऊँ

 

8.

शिव के सभी अनुयायी कर्म के विधान में विश्वास करते हैं - कि सबको अपने सभी कर्मों का फल अवश्य मिलता है - और यह कि सभी कर्मों के नष्ट होने तक और मोक्ष या निर्वाण प्राप्त होने तक सभी आत्मा बार-बार शरीर धारण करती रहती हैं। ॐ

 

9.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है कि ज्ञान या प्रज्ञा प्राप्त करने के लिए चर्या या धार्मिक जीवन, क्रिया या मंदिर में पूजा और जीवित सत्गुरू की कृपा से योगाभ्यास अत्यावश्यक है, जो पराशिव की और ले जाता है। ॐ

 

10.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है अशुभ या अमंगल का कोई तात्त्विक अस्तित्व नहीं है। जब तक अशुभ के आभास का स्रोत अज्ञान स्वयं न हो, अशुभ का कोई स्रोत नहीं है। शैव हिन्दू वास्तव में दयालु होते हैं, वे जानते हैं कि अन्ततः कुछ भी शुभ या अशुभ नहीं है। सबकुछ शिव की इच्छा है। ॐ

 

11.

शिव के सभी अनुयायियों का विश्वास है कि तीनों लोकों द्वारा सामंजस्यपूर्वक एकसाथ कार्य करना धर्म है और यह कि यह सामंजस्य मंदिर में पूजा करके उत्पन्न किया जा सकता है, जहां पर तीनों लोकों की सत्ताएं संप्रेषण कर सकती हैं। ॐ

 

12.

शिव के सभी अनुयायी पंचाक्षर मंत्र, पांच पवित्र अक्षरों से बने मंत्र "नमः शिवाय" में विश्वास करते हैं, जो शैव संप्रदाय का प्रमुख और अनिवार्य मंत्र है। "नमः शिवाय" का रहस्य इसे सही होठों से सही समय पर सुनना है। ॐ

 


 

्रद्धा की अभिपुष्टि:

भगवान शिव सर्वव्यापी प्रेम और ज्ञानातीत सत्ता हैं।

Anbe Sivamayam, Satyame Parasivam (तमिल उक्ति).

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अभ्यास
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पंच नित्य कर्म

ंच नित्य कर्म का अर्थ है, "पांच सतत् कर्त्तव्य"। इस परंपरागत धार्मिक कर्त्तव्यों को जब समुमित रूप से निष्पादित किया जाता है तो यह जीव को हमारे महान ईश्वर शिव के पवित्र चरणों के समीप लाता है, और उन सभी मौलिक कर्त्तव्यों को पूरा कर देता है जिसके लिए हम धर्म एवं स्वयं के ऋणी हैं। ये कर्त्तव्य नीचे दिए गए हैं:

1.

उपासनाः गृहमंदिर या मंदिर में पूजा
प्रिय बच्चों को गृहमंदिर में दैनिक पूजा सिखायी जाती है - धार्मिक अनुष्ठान, आत्मनिग्रह, जप, योग एवं धार्मिक अध्ययन। गृहमंदिर में समर्पण के माध्यम से, परंपरागत वस्त्र धारण करके वे सुरक्षित होना, दैवी प्रेम उत्पन्न करना और मन को शांत साधना के लिए तैयार करना सीखते हैं।

 

2.

उत्सवः पवित्र पर्व
प्रिय बच्चों को घर एवं मंदिर में हिन्दू त्योहारों एवं पवित्र पर्वों में भाग लेना सिखाया जाता है। ऐसे मंगलमय उत्सवों में वे ईश्वर के साथ मधुर संप्रेषण के माध्यम से प्रसन्न रहना सीखते हैं। उत्सव में सोमवार या शुक्रवार को उपवास करना और मंदिर जाना तथा अन्य पवित्र पर्वों को मनाना शामिल है।

 

3.

धर्मः धार्मिक या नेक जीवन
बच्चों को कर्त्तव्यपूर्ण एवं सदाचारयुक्त जीवन जीना सिखाया जाता है। दूसरों के बारे में सोचकर, माता-पिता, बड़ों एवं स्वामियों का आदर करके, दैवी नियमों, विशेषकर अहिंसा, मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को क्षति न पहुंचाकर वे अहं से मुक्त होना सीखते हैं। इस प्रकार वे कर्मों का निराकरण करते हैं।

 

4.

तीर्थयात्राः पवित्र स्थानों पर जाना
प्रिय बच्चों को तीर्थयात्रा का महत्त्व सिखाया जाता है तथा वर्ष में कम से कम एक बार उन्हे पास या दूर के पवित्र व्यक्तियों, मंदिरों या स्थानों के दर्शन के लिए ले जाया जाता है। इन यात्राओं के दौरान दुनियादारी के कार्यों को दूर करके और ईश्वर, देवताओं और गुरूओं को जीवन का एक मात्र केन्द्र बनाकर वे अनासक्त होना सीखते हैं।

 

5. संस्कारः गमन के धार्मिक अनुष्ठान
प्रिय बच्चों को बहुत से संस्कारों का पालन करना सिखाया जाता है जो उनके जीवन मार्ग से गुजरने को व्यक्त तथा पुनीत करते हैं। जन्म, नामकरण, मुंडन, अन्नप्राशन, कर्णछेदन, विद्यारंभ, वयस्क होने, विवाह एवं मृत्यु के अनुष्ठानों को मनाकर वे परंपरागत होना सीखते हैं।



यम और नियमः
हिन्दुओं की आचार-संहिता

दस प्रतिबंध या चम

1.

क्षति न पहुंचाना, अहिंसाः मन, मचन, या कर्म से किसी को क्षति न पहुंचाना।

2.

सच्चाई, सत्यः झूठ बोलने या वचन भंग करने से विरत रहना।

3.

चोरी न करना, अस्तेयः चोरी, लालच न करना या ऋण न लेना।

4.

दैवी आचार, ब्रहमचर्यः जब अकेले हों तो ब्रहमचारी रहकर वासनाओं को नियंत्रित करना एवं वैवाहिक जीवन में ईमानदार रहना।

5.

धीरज, क्षमाः लोगों के प्रति क्षमाशील रहना एवं परिस्थितियों में धैर्य रखना।

6.

दृढ़ निश्चय, धृतिः गैर-अध्यवसाय, भय, अनिर्णय एवं चुनौतियों पर विजय प्राप्त करना।

7.

कृपा, दयाः सभी जीवों के प्रति निर्दय, क्रूर एवं असंवेदनशील भावनाओं पर विजय प्राप्त करना।

8.

ईमानदारी, सीधापन, आर्जवः छल-कपट एवं बुरे कर्मों का परित्याग करना।

9.

संयमित क्षुधा, मिताहारः न तो अत्यधिक खाना और न ही मांस, मछली, मुर्गा-मुर्गी या अण्डे खाना।

10.

शुद्धता, शौचः शरीर, मन और वाणी को दूषित होने से बचाना।



दस व्यवहार, नियम

1.

पश्चाताप, ह्नीः विनम्र होना एवं बुरे कर्मों के लिए शर्मिंदा होना।

2.

तृप्ति, संतोषः जीवन में आनन्द और शांति खोजना।

3.

देना, दानः पुरस्कार का विचार लाए बिना उदारतापूर्वक दशमांश का दान करना।

4.

श्रद्धा, आस्तिक्यः ईश्वर, देवताओं, गुरू और ज्ञानोदय के मार्ग में दृढ़ विश्वास करना।

5.

भगवान की पूजा, ईश्वर पूजनः दैनिक पूजा एवं ध्यान के माध्यम से समर्पण (की भावना) उत्पन्न करना।

6.

शास्त्रों को सुनना, सिद्धान्त श्रवणः शिक्षाओं/उपदेशों का अध्ययन तथा अपनी वंश परम्परा के विद्वानों (के विचारों) को सुनना।

7.

प्रज्ञान, मतिः गुरू के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक संपल्प एवं विवेक विकसित करना।

8.

पवित्र प्रतिज्ञा, व्रतः धार्मिक प्रतिज्ञाओं, नियमों एवं प्रथाओं को निष्ठापूर्वक पूरा करना।

9.

सस्वर पाठ करना, जपः प्रतिदिन मंत्रों का जाप करना।

10.

तपश्चर्या, तपसः साधना, प्रायश्चित, तपस और बलिदान का निष्पादन।

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About the author

सतगुरू शिवाय सुब्रमणियास्वामी (1927-2001)
गुरूदेव का जन्म केलीफोर्निया में हुआ था और 1949 में श्रीलंका के सबसे महान संत योगास्वामी ने उन्हें सन्यास की दीक्षा दी। आधुनिक हिन्दू पुनर्जागरण के शिल्पी और 2.5 मिलियन तमिल शैवों के सतगुरू, गुरूदेव ने अमेरिका में प्रथम हिन्दू चर्च की स्थापना की, हिन्दुइज्म टुडे पत्रिका की स्थापना की तथा हवाई के एक द्वीप कौवाई पर पूर्णतः पत्थरों से निर्मित आधीनम और शिवमंदिर का निर्माण कराया। उनके उत्तराधिकारी एवं शैवसिद्धान्त योगपद्धति एवं कैलास परम्परा के गुरू, सत्गुरू बोधिनाथ वेलनस्वामी हैं। ये सारांश गुरूदेव की प्रसिद्ध पुस्तक मास्टर कोर्स ट्राइलोजी से लिए गए हैं, जो 365 पाठों में हिन्दू दर्शन, संस्कृति और तत्त्वमीमांसा की दैनिक अध्ययन की पुस्तक है। हमारी वेबसाइट www.gurudeva.org पर आएं।


शब्दावली

आधीनमः मठ-मंदिर परिसर

अंतर्लोकः सुक्ष्म लोक

आगमः अपौरूषेय/प्रकट हिन्दू धर्मग्रंथ, विशिष्ट

अहिंसाः
अन्य जीवों को हानि न पहुंचाना

अणवः
व्यक्तिवाद/व्यष्टिवाद जो हमें ईश्वर से अलग करता है।

भूलोकः पृथ्वीलोक

दर्शनः
ईश्वर या सतगुरू की पवित्र झलक

धर्मः
ईश्वरीय विधान, नेक राह

गणेशः
हाथी के मुखवाले भगवान, शिव के पुत्र

गुरूः
शिक्षक

हिन्दुत्वः हिन्दुत्व, जो विश्व, का सर्वाधिक प्राचीन धर्म है। आज लगभग एक बिलियन लोग इसके अनुयायी हैं, जिनमें से अधिकतर भारत में रहते हैं। इसमें चार प्रमुख संप्रदाय हैं। प्रत्येक संप्रदाय एक ही सर्वोच्च सत्ता के दूसरे स्वरूप की पूजा करता हैः शैव (शिव की पूजा); शाक्त (देवी या शक्ति की पूजा) ; वैष्णव (विष्णु की पूजा); तथा स्मार्त (एक उदार पंथ)। ये संस्कृति और विश्वास की वृहत् विरासत के साझीदार हैः - जिनमें कर्म, धर्म, पुनर्जन्म, सर्वव्यापी ईश्वरत्व, मंदिर-पूजा, संस्कार, विविध देवगण, गुरू-शिष्य परंपरा एवं धर्मग्रंथों के आधार स्वरूप चारों वेद शामिल हैं।

कर्मः
कार्य- कारण का नियम

कार्तिकेयः
मुरूगन का दूसरा नाम

पद्मासनः
बैठकर ध्यान करने की एक मुद्रा जिसमें टांगों को मोड़कर जांघों पर रख लेते हैं।

महादेवः
एक देवता

मंत्रः
रहस्यमय ध्वनि या वाक्यांश

मायाः आविर्भाव का सिद्धान्त, सापेक्ष सत्ता

मोक्षः पुनर्जन्म से मुक्ति

मुरूगनः
योग के देवता, शिव के पुत्र

नमःशिवायः
"शिव को प्रणाम"

पराशक्तिः
सर्वव्यापी ऊर्जा और चेतना के रूप में शिव

पराशिवः
निराकार परम सत्ता के रूप में शिव

परमेश्वरः
इस ब्रहमाणड के कर्ता, भर्ता और हर्ता के रूप में शिव

शैव संप्रदायः
शिव के अनुयायियों का धर्म

संन्यासः
किसी स्वामी द्वारा संसार का परित्याग

सत्गुरूः
परम सत्य की शिक्षा देने वाला शिक्षक

शक्तिः
शिव की शक्ति या ताकत

शिवः
सर्वोच्च देव

शिवलोकः
आध्यात्मिक लोक

स्वामीः
हिन्दू संतों का स्वामी कहते हैं

तमिलः
दक्षिण भारत की प्राचीन संस्कृति और भाषा

तपस्:
कठोर आध्यात्मिक अनुशासन

वेदः
अपौरूषेय हिन्दू धर्मग्रन्थ, सामान्य

वेलः
मुरूगन का ज्ञान का बल्लम या भाला

विष्णुः
वैष्णवों द्वारा पूचित सर्वोच्च देव

योगः
"जोड़ना", व्यक्तिगत चेताना को लोकोत्तर चेतना से जोड़ने की प्रक्रिया

योगीः
जो योग का अभ्यास करता है।
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